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जीभ के रोग

परिचय :-

जीभ के विभिन्न प्रकार के रोग शरीर में होने वाले कई प्रकार के रोगों के कारण ही उत्पन्न होते हैं। जीभ के अधिकतर रोग पाचन क्रिया खराब होने के कारण या शरीर के अन्य गड़बड़ी के कारण होते हैं। जीभ के कई रोग तो जीभ के जल जाने के कारण भी होते हैं।

कारण :-

स्थानिक संक्रमण से बैक्टीरिया वायरस या फंगस के कारण तथा कृत्रिम दांत लगवाने पर ठीक प्रकार से दांत न लगने पर, चोट लगने के कारण, जीभ जल जाने के कारण, तम्बाकू, ऐल्कोहल का सेवन करने के कारण, रसायन से मुख साफ करते समय मुख के रोग के कारण, बेचैनी और अवसाद के कारण, वृद्धावस्था, पूर्ण पोषण न मिलने के कारण, फ्लोरिक एसिड व विटामिन- ´बी´ की कमी के कारण, खून की कमी के कारण, एच, आई. वी संक्रमण के कारण, त्वचा के रोग या जीभ के कैंसर रोग के कारण जीभ के रोग होते हैं।



लक्षण :-

जीभ के कई प्रकार के रोगों में अधिकतर जीभ की नोक और किनारी लाल और सूजी हुई रहती है, जीभ पर सफेद चकत्ते हो जाते हैं, जीभ पर तेज जलन होती है, जीभ पर मोटा लेप चढ़ा रहता है। कई बार तो शरीर में खून की कमी के कारण जीभ का रंग हल्का हो जाता है तथा जीभ पर दरारें पड़ जाती है।

जीभ के अल्सर रोग में औषधियों का प्रयोग :-

जीभ पर छोटी-छोटी फुंसियां होने पर जीभ लाल हो जाती, हल्की फूल जाती है और उसमें दर्द होता है एवं कभी-कभी जीभ फटी हुई दिखाई देती है।

जीभ का रंग बदरंग होना :-

जीभ का रंग शारीरिक रोग के अनुसार बदलता रहता है। ऐसे में जीभ कभी लाल, सफेद, नीला, हरा, बादामी, काला आदि हो सकता है। इस तरह जीभ का रंग बदलने पर जीभ की रंगों के अनुसार औषधि दी जाती है।

जीभ के रंगों के अनुसार औषधियां :-
जीभ काले रंग के होने पर विभिन्न औषधियों उपयोग करना हितकारी होता है- आर्स, मर्क-कौर, मर्क-सियेनेटस, बैप्टि, कैल्के, लाइको, ओपि, फॉस और रस-टॉक्स आदि।
यदि जीभ का रंग काला-नीला मिला हुआ हो या केवल नीला हो या केवल पीला हो तो ऐसे में इन औषधियों का प्रयोग करें- आर्स, क्यूप्रम, डिजि, मर्क-सिये, ओपि या विरेट्र-ए आदि।
जीभ का रंग बादामी होने पर विभिन्न औषधियों का प्रयोग कर सकते हैं जैसे- एमोन-का, कायो, क्यूप्रम-आर्स, एन्टिम-टा, आर्स, हायोसा, मेडो, मर्क-सिये, म्यूर-ए, नैट्रम-स एवं फॉस आदि।
जीभ का केन्द्रस्थल बादामी रंग का हो तो बैप्टि, फॉस या प्लम्बम-मेट औषधि का उपयोग करने से लाभ मिलेगा।
बादमी रंग का जीभ होने तथा जीभ सूख जाने पर एलैन्थ, ब्रायो, लैके, रस-टॉ, ऐन्टिम-ट, आर्स, बैप्टि और स्पंजि औषधियों में से कोई भी औषधि का प्रयोग करना हितकारी होता है।
जीभ साफ हो और इसके साथ ही कोई जीभ से सम्बंधित रोग हो तो आर्स, इपि, मैग-फॉ, नाइट्रि-ऐ, सिना, सिन्को, डिजि, पाइरोज, रस-टॉक्स या सीपिया औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है।
यदि जीभ का अगला भाग साफ हो और पीछे के भाग पर लेप चढ़ा हुआ हो तो सीपिया औषधि का सेवन करना फायदेमंद होता है।
यदि किसी स्त्री की जीभ मासिकधर्म के समय साफ रहती हो और मासिकधर्म बंद होने पर मैला हो जाती हो तो ऐसे लक्षणों में सीपिया औषधि का प्रयोग करना हितकारी होता है।
किसी रोगी की जीभ के बीच का भाग मटमैला हो जैसा टाइफॉयड बुखार के समय रोगी के जीभ पर होता है। ऐसे में रोगी के लिए आर्निका, बैप्टि या म्यूर-ए औषधि का उपयोग करना लाभदायक होता है।
अगर रोगी की जीभ थुलथुली, तर एवं दांतों के दाग के साथ उसका रंग बदलता हो तो ऐसे इन औषधियों का प्रयोग करें- आर्स, चेलिडो, हाइड्रै, नैट्रम-फॉ, पोडो, रस-टॉ, कैलि-वाई, मर्क-कौ, मर्क-सौ, स्ट्रैमो आदि।
उपचार के लिए इन औषधियों से कोई एक औषधि का प्रयोग करना हितकारी होता है।यदि जीभ पर झाग बनता हो और जीभ के किनारों पर बुलबुले बनते हो तो नैट्रम-म्यू औषधि से उपचार करें।
किसी भी प्रकार के जीभ के रोग की अवस्था में जीभ पर लेप जम जाने पर एन्टि-टा, आर्स, बैप्टि, नक्स-वो, चिनि-आर्स, जेल्स, लाइको या पल्स औषधि का उपयोग करना हितकारी होता है।
यदि जीभ के पिछले भाग पर भारीपन महसूस होने के साथ सफेद लेप चढ़ा हुआ हो तो केलि-म्यूर औषधि लेनी चाहिए।
जीभ हरे रंग की होने पर उपचार के लिए नैट्रम-स या प्लम्बम औषधि का प्रयोग करना हितकारी होता है।
यदि जीभ पर आड़े-तिरछे निशान पड़ गए हों तथा जीभ के किनारों में चकत्ते हो गए हों तो एण्टि-क्रू, लैके, नेट्रम-म्यू, नाइट्रि-ऐ, आर्स, कैलि-बा तथा रस-टॉक्स आदि औषधियों में से कोई भी औषधि का प्रयोग करके उपचार करना हितकारी होता है।
लाल रंग की जीभ होने पर रोगी को उपचार के लिए एकोन, एपिस, आर्स, हायोस, बेला, कैन्थ, क्रोटेल, जेल्स, लैके, मर्क-कौ, मेजे, पाइरो, रस-टॉक्स, नक्स-वो तथा टेरिबि आदि औषधियों में से कोई एक औषधि प्रयोग करने से रोग में लाभ होता है।
यदि जीभ सूखा और लाल हो विशेषकर बीच का भा

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