हृदय तथा रक्त रोग : हृदय रोग (Heart Diseases)
हृदय रोग (Heart Diseases)
परिचय:-
यह रोग उन व्यक्तियों को होता है जो अधिकतर किसी तरह का व्यवसाय करते हैं तथा हर समय अपने व्यवसाय में आवश्यकता से अधिक व्यस्त रहते हैं। जो व्यक्ति शारीरिक तथा मानसिक रूप से परेशान रहते हैं उन व्यक्तियों को भी हृदय के कई प्रकार के रोग हो सकते हैं। वैसे देखा जाए तो राजनीतिज्ञ, डॉक्टर, अधिवक्ता तथा सिने-कलाकर इस रोग से ज्यादा प्रभावित होते हैं।
हृदय से संबन्धित अनेक रोग हो सकते हैं-
दिल का दौरा पड़ना:-
हृदय की धमनी की अन्दरुनी सतह के नीचे वसा (चिकनाई) जमने से अवरोध (रुकावट)
उत्पन्न होता है तो इसकी सतह पर धीरे-धीरे खिंचाव पड़ता है और एक दिन यह
सतह फट जाती है। सतह के फटने के साथ ही कुछ रसायनिक क्रियाओं के कारण वहां
रक्त का थक्का जम जाता है और यह अवरोध 100 प्रतिशत में परिवर्तित हो जाता
है। जमा हुआ थक्का हृदय के लिए बहुत ज्यादा खतरनाक होता है क्योंकि जब यह
हृदय के किसी भाग में जम जाता है तो यह उस भाग को नष्ट कर देता है और रोग
उत्पन्न कर देता है।
अल्पकालिक हृदय-शूल (कुछ समय के लिए हृदय में दर्द होना)-
जब
हृदय की धमनी के अन्दर की सतह पर (इंटरनल लाईनिंग इनटाइमा) के नीचे वसा के
जमने के साथ 71 प्रतिशत या उससे से अधिक अवरोध उत्पन्न होता है तो यह रोग
व्यक्ति को हो जाता है। यह इसलिए होता है क्योंकि हृदय के अन्दर रक्त और
ऑक्सीजन सही तरह से पहुंच नहीं पाता है। इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति को
3-4 मिनट तक हृदय में दर्द होता रहता है। जब यह दर्द रोगी व्यक्ति को होता
है तो उसे चलने या झुकने में बहुत अधिक परेशानी होती है। जब व्यक्ति थोड़ी
देर आराम कर लेता है तो उस समय उसका दर्द ठीक हो जाता है।
ह्रत्कम्प (पेलीपिएशन ऑफ हॉर्ट):-
जब किसी व्यक्ति को ह्रत्कम्प का रोग हो जाता है तो उसकी दिल की धड़कन तेजी
से चलने लगती हैं। यह रोग पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में अधिक होता है।
इस रोग के होने का सबसे प्रमुख कारण हृदय की मांसपेशियों और स्नायुओं में
कमजोरी आ जाना है। इस रोग के कारण रोगी के हाथ-पैर ठंडे पड़ जाते हैं।
रक्त नलिकाओं का कड़ा पड़ जाना-
यह रोग एक प्रकार की धमनी की दीवारों का रोग है जो पहले मध्य और बाद में
अन्दरूनी सतह को रोगग्रस्त कर देता है। इस रोग के कारण धमनी की दीवारों के
लचीलेपन में कमी आ जाती है। जब यह रोग किसी कम उम्र या बड़े उम्र के व्यक्ति
को होता है तो यह उसके लिए और भी खतरनाक हो जाता है। इस रोग के कारण
कोरोनरी धमनियों को नुकसान पहुंचता है तथा यह रोग शरीर के किसी भी भाग को
नष्ट कर सकता है।
हृदयकपाट संबन्धी रोग-
हृदयकपाट संबन्धी रोग के कारण हृदय का माईट्रल वाल्व अधिक प्रभावित होता
है। जिससे हृदय के अन्दर छिद्र (मिटरल स्टेनोसिस) तथा सिकुड़न
(इंकोमपेटेन्स) दोनों ही एक साथ हो जाते हैं। इस रोग के कारण हृदय का
और्टिक कपाट भी प्रभावित होता है जिसके कारण से इसमें छिद्र (मिटरल
स्टेनोसिस) तथा सिकुड़न (इंकोमपेटेन्स) हो जाता है।
हृदय का आकार में बड़ा होना:-
जब शरीर के अन्दर दूषित द्रव की मात्रा अधिक हो जाती है तो हृदय पर बहुत
अधिक दबाव पड़ता है जिसके कारण हृदय का आकार बढ़ जाता है। इस रोग के होने के
और भी कारण हैं जैसे- दिल के कपाट कमजोर हो जाना, उच्च रक्तचाप होना,
मधुमेह रोग होना तथा दिल की धमनियों में रुकावट हो जाना।
परिहार्दिक सूजन-
इस
रोग के कारण हृदय की झिल्ली में सूजन हो जाती है जिसके कारण रोगी व्यक्ति
के हृदय में हल्का-हल्का दर्द होने लगता है तथा उसकी नाड़ी तेज गति से चलने
लगती है। कभी-कभी तो इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति को बुखार भी हो जाता है
और कभी झिल्ली में पानी भर जाता है। झिल्ली में पानी भरने के कारण हृदय में
सूजन हो जाती है जिसके कारण रोगी व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी होने
लगती है।
मध्यहार्दिक सूजन-
मध्यहार्दिक सूजन रोग के कारण हृदय की मांसपेशियों में सूजन आ जाती है।
हृदय में यह सूजन मधुमेह तथा निमोनिया रोग हो जाने के कारण होती है।
अर्न्तहार्दिक सूजन (ऐडोकेरडिटिस):-
अर्न्तहार्दिक सूजन (ऐडोकेरडिटिस) रोग के कारण हृदय के अन्दरूनी भाग में सूजन आ जाती है।
धमनियों का फटना:-
इस
रोग के कारण हृदय की धमनियों की दीवारें बहुत अधिक कमजोर हो जाती हैं
जिसके कारण से ये गुब्बारे की तरह फट जाती हैं। इस रोग से पीड़ित अधिकतर
व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है या इस रोग से पीड़ित बहुत कम रोगी ही बच
पाते हैं।
हृदय की मांसपेशियों का फैल जाना-
इस
रोग के होने का सबसे प्रमुख कारण हृदय की मांसपेशियों का अधिक काम करना है
जिसके कारण मांसपेशियां फैल जाती हैं और यह रोग व्यक्ति को हो जाता है। इस
रोग के होने का सबसे प्रमुख कारण उच्च रक्तचाप (हाई ब्लडप्रेशर) रोग है।
हृदय स्पंद वेगवर्धन-
इस
रोग से पीड़ित रोगी की नाड़ी की गति तेज हो जाती है। इस रोग का दौरा पड़ता है
और जब यह दौरा पड़ता है तो यह लगभग 8 दिन तक रहता है। इस रोग के कारण नाड़ी
की गति का आवेग तेज हो जाता है।
मंद हृदय स्पंद-
वैसे देखा जाए तो सभी व्यक्तियों में नाड़ी की गति 60 से 100 स्पंद तक होती
है और जब यह गति इससे कम हो जाती है तो नाड़ी गति मंद हो जाती है। यदि नाड़ी
की गति 50 स्पंद से कम हो जाती है तो यह खतरनाक हो सकता है और रोगी व्यक्ति
के शरीर में कई प्रकार के रोग उत्पन्न हो सकते हैं।
हृदय तथा रक्त रोग : हृदय रोग (Heart Diseases)
Reviewed by ritesh
on
2:09 AM
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