यह योगराज गूगुल तीनो दोषों को नष्ट करता है ! इसके सेवन के दौरान कोई बहुत कड़े परहेज़ की जरूरत नहीं होती है |
इसके सेवन से सब प्रकार के वात रोग, बवासीर, संग्रहणी रोग, प्रमेह, वात रक्त, नाभि शूल, भगन्दर, उदावर्त, क्षय, कोढ़, गुल्म, अपस्मार, उरु ग्रह, मन्दाग्नि, श्वास, कास और अरुचि रोग नष्ट होते हैं |
यह पुरुषों के वीर्य दोष और स्त्रियों के रजो दोष को दूर करती है |
यह पुरुषों को पुत्र पैदा करने योग्य तथा स्त्रियों को गर्भ धारण करने योग्य बना देती है |
योगराज गूगुल रास्नादीगण के काढ़े के साथ सेवन करने से वात रोगों को, काकोल्यादीगण के काढ़े के साथ सेवन करने से पित्त रोगों को, आरग्वधादी के काढ़े के साथ खाने से कफ रोगों को, दारु हल्दी के क्वाथ से प्रमेहों को, गोमूत्र से पीलिया को, शहद से मेद वृद्धि को, नीम के काढ़े से कोढ़ को, गुर्च के काढ़े से वातरक्त को, पीपरी के काढ़े से सूजन और शूल को, पाढ़रि के क्वाथ से चूहों के विष को, त्रिफला के क्वाथ से कठिनतर नेत्र रोगों को और पुनर्वादी के काढ़े के साथ सेवन करने से सब प्रकार के उदर रोगों को नष्ट करता है |
निर्माण विधि – चीता की जड़, अजमोदा, वच, सोंठ, पीपरी, चव्य, पीपला मूल, भूनी हींग, पीली सरसों, जीरा, कालाजीरा, रेणुका (संभालू के बीज), इंद्र जौ, पाढ़, बाय बिडंग, गजपीपरि, कुटकी, अतीस, भारंगी और मुर्वाये बीस औषधियाँ 3 – 3 माशे लेवें | सब औषधियों से दुगुना 10 तोले त्रिफला लें | सब औषधियों को पीसकर उस चूर्ण के बराबर 15 तोला शुद्ध गूगुल लेवें | गूगुल को घृत से संयोग से खूब कूटकर गुड़ के पाक की बराबर करके उपर्युक्त चूर्ण मिला देवें पश्चात् (बंग भस्म, चांदी की भस्म, सीसा की भस्म, लोह भस्म, अभ्रक भस्म, मंडूर भस्म और रस सिन्दूर प्रत्येक रस चार चार तोले डालकर) सबका एक गोला बना लेवे और घृत के चिकने बर्तन में रख देवें | फिर 3 – 3 माशे की गोलियां बना लेवें |
खुद से बनाने में आपको दिक्कत महसूस हो तो आप इसे बाबा रामदेव के पतंजलि स्टोर से भी शुद्ध रूप मे खरीद सकते हैं | अग्नि, बल और दोषों का विचार कर या किसी जानकार वैद्य की सलाह से इसे ग्रहण करना चाहिए |

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