शतावरी की खूबसूरत लता के रूप में घरों और बंगलों में भी लगाई जाती है. इसके पत्ते हरे रंग के धागे जैसे सोया सब्जी की तरह खूबसूरत, उठल में शेर के नखों की तरह मुड़े हुए मजबूत कांटे, जड़ों में सैकड़ों की संख्या में हरी भूरी जड़ें जो इसका प्रमुख गुणकारी अंग शतावरी है मिलती है. इन जड़ों को ही ऊपर का पतला छिलका उतार सुखा कर औषधि रूप में प्रयोग करते हैं.
शतावरी गुणों में भारी, शीतल, स्वाद में कड़वी व मधुर, रसायन गुणों से भरपूर वायु और पित्त नाशक,पुरुषों में शक्ति, ओज वीर्यवर्घक , स्त्रियों के स्तनों में दूध बढ़ाने वाली, नेत्र ज्योति, स्मृति, पाचक अग्नि, बुद्धि बढ़ाने वाली, अतिसार, गुल्म, स्नायु रोग नाशक, स्निग्ध, कामोद्दीपक, यकृत, गुर्दे की बीमारियों में लाभदायक है. यह पौष्टिक, कृशता मिटाने वाली, वृद्धावस्था रोकने वाली, रक्त पित्त व अम्ल पित्त, शरीर की ऊष्मा व जलन को मिटाती है. वायु नष्ट करती है.
शतावरी की जड़ को छीलकर यों ही चबाकर खाया जा सकता है. इसका रस निकाल कर पीना भी शक्तिवर्घक है. इसको सुखाकर उसका चूर्ण लड्डू, पाक, घृत, तेल तथा अनेक मिश्रित योग बनाये जाते हैं जो सारे देश में वैद्य और हकीम अपने रोगियों को सेवन कराते हैं. इसका विभिन्न रोगों में निम्नानुसार प्रयोग किया जाता है.
शक्तिवर्घक - इसके चूर्ण की दूध में डाल कर बनाई खीर या पाक बना कर खाने से पुरूषो में वीर्य गाढ़ा होता है और अधिक बनता है तथा शीघ्र पतन व स्वप्न दोष में लाभ पहुंचता है. प्रसूता स्त्रयों के स्तनों में दूध बढ़ता है.
सूखी खांसी - अडूसे का रस, शतावरी का रस और मिश्री मिलाकर चाटने या तीनों का समभाग चूर्ण लेने से सूखी खांसी मिटती है तथा कफ में खून आने की बीमारी में लाभ होता है.
अनिद्रा - शतावरी का पांच से दस ग्राम चूर्ण, दस पन्द्रह ग्राम घी तथा दूध औटा कर पीने से गहरी शांत विश्रामदायक नींद आ जाती है.
ज्वर - वायु के ज्वर में शतावरी और गिलोय का रस गुड़ मिलाकर लें. वायु से जोड़ों के दर्द में शतावरी सिद्ध तेलों (शतावरी तेल, नारायण तेल, महानारायण तेल) की मालिश व सेंक से लाभ होता है.
मूत्र रोग - मूत्र की जलन और कम आने तथा प्रमेह और बहुमूत्र रोग, मूत्राशय की दुर्बलता और çस्त्रयों के सोम रोग में शतावरी और गोखरू का चूर्ण मिश्री मिलाकर या शर्बत बनाकर या काढ़ा बनाकर लें.
खूनी दस्त - गीली शतावरी पीस दूध में मिलाकर कपड़े से छान कर या रस में घी मिलाकर पकाकर लेने से रक्तातिसार मिटता है.
सिरदर्द - शतावरी को कूट कर निकाला गया रस समान भाग तिल तेल मिला सिद्ध किए तेल की मालिश से सिरदर्द और आधाशीशी रोग में आराम मिलता है.
शराब का नशा - शतावरी का रस, मुलहठी छिली हुई, दूध डाल सिद्ध गाय का घी पीने से शराब का नशा उतर जाता है.
पथरी -शतावरी का रस और दूध मिलाकर पीने से पेशाब की पथरियां टूट कर निकल जाती हैं. इस प्रकार शतावरी विभिन्न रूपों में प्रयोग करने पर स्वरभंग (गला बैठना) अपस्मार (दौरा आना) रक्त विकार, वातरक्त (गाउट)शरीर में जलन, उदर शूल, प्रदर, विष विकार आदि रोगों को नष्ट करती है.
शतावरी प्रधान प्रमुख प्रख्यात आयुर्वेदिक योग, शतावरी घृत, फलघृत, सोमघृत, शतावर्यादि चूर्ण, अश्वगंधादि चूर्ण, महानारायण तेल, महायोगराज गूगल, शतावरी गूगल, शतावरी कल्प, शतावरी पाक आदि सर्वत्र प्रयोग किए जाते हैं. यह तीनों दोष को नष्ट करने वाली होने से सब प्रकार से उपयोग में आने वाली बहुपयोगी वनोषिधि है.
शतावरी
Reviewed by Unknown
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12:24 AM
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